1) तेरा चुप रहना मिरे ज़ेहन में क्या बैठ गया इतनी आवाज़ें तुझे दी कि गला बैठ गया.. यूं नहीं है कि फ़क़त मैं ही उसे चाहता हूं जो भी उस पेड़ की छांव में गया बैठ गया..
2) यह ज्योग्राफियां, फ़लसफा, साइकोलॉजी, साइंस, रियाजी वगैरह ये सब जानना भी अहम है मगर उसके घर का पता जानते हो..?
3) रात के तीन बजने को है यार ये कैसा महबूब है? जो गले भी नहीं लग रहा और घर भी नहीं जा रहा..! Tehzeeb Hafi Shayari
4) तुम्हें पता तो चले बेजुबान चीज का दुख मैं अब चराग की लौ ही नहीं बनाऊंगा.. मैं दुश्मनों से जंग अगर जीत भी जाऊं तो उनकी औरतें कैदी नहीं बनाऊंगा.. Tehzeeb Hafi
5) इतना मीठा था वो गुस्से भरा लहजा मत पूछ उसने जिस जिस को भी जाने का कहा बैठ गया.. अपना लड़ना भी मोहब्बत है तुम्हें इल्म नहीं चीख़ती तुम रही और मेरा गला बैठ गया..
6) गली से कोई भी गुजरे तो चौंक उठता हूं नए मकान में खिड़की नहीं बनाऊंगा.. फरेब देकर तेरा शरीर जीत लूं लेकिन मैं पेड़ काट के कश्ती नहीं बनाऊंगा..
7) सच बताएं तो तेरी मोहब्बत ने खुद पर तवज्जो दिलाई हमारी.. तू हमें चूमता था तो घर जाकर हम देर तक आईना देखते थे..!
8) सारा दिन रेत के घर बनते हुए और गिरते हुए बीत जाता.. शाम होते ही हम दूरबीनों में अपनी छतों से खुदा देखते थे..
9) तुम क्या जानो उस दरिया पर क्या गुजरी तुमने तो बस पानी भरना छोड़ दिया.. बस कानों पर हाथ रख लेते थोड़ी देर और फिर उस आवाज ने पीछा छोड़ दिया..
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10) मैं फूल हूं तो फिर, तेरे बालों में क्यों नहीं हूं.. तू तीर है तो मेरे, कलेजे के पार हो..!