Shayari Sukun Presents
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तेरे वजूद से रौशनी बिखर गई तेरे ज़िक्र से मेरी शायरी निखर गई तेरी शरारतों से ज़िंदगी खुशगवार हैं अँधेरी ज़िंदगी में चाँदनी उतर गई -Moeen
उसे आदत थी शरारत की सदीयों जिसकी हम ने इबादत की.. शहर छोड़ कर जाने वाले को कसमें बहोत दी थी रफाकत की.. -Moeen
मुझे उस ज़ालिम की आदत थी मुद्दतों जो मेरी चाहत थी.. मैं उसे अपना मान बैठा था उस सितमगर को सुझी शरारत थी.. -Moeen
सुरूर उस का किसी अज़ान जैसा हैं वो मेरे लिए सारे जहान जैसा हैं शरारतें उस की हँसाती हैं रोतो को हुस्न उस का उर्दु ज़बान जैसा हैं -Moeen
इस क़दर खो गया प्यार करते करते उनमें, के रज्जब आ गया.. उफ्फ़, ये शरारत भरी नजरों से देखना उनका गजब हो गया.. [रज्जब - इस्लामी कैलेण्डर का सातवां मास]
बड़ी आसानी से चाहत को मेरी तुम तिजारत समझ बैठे.. बेवफा, प्यार में दिल तोड़ा मेरा फिर भी तुम शरारत समझ बैठे.. तिजारत : सौदागरी ; व्यापार ; व्यवसाय
ओ बेवफा, आखिर क्यों प्यार को मेरे, समझ ली तुमने शरारत.. खुदा कसम, तुम से ही थी दिल को मेरे सच्ची मोहब्बत.. -Santosh
शरारत भरी बातों से मिलती थी दिल को राहत मेरी.. कैसे दिलाऊं यकीन के तुम ही तो थे चाहत मेरी.. -Santosh shayarisukun.com
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शायरियां पढ़ने के लिए शुक्रिया!