यूँ भी इक बार तो होता कि समुंदर बहता.. कोई एहसास तो दरिया की अना का होता.. -------- ये रोटियाँ हैं ये सिक्के हैं और दाएरे हैं.. ये एक दूजे को दिन भर पकड़ते रहते हैं…
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तन्हाई की दीवारों पर घुटन का पर्दा झूल रहा हैं.. बेबसी की छत के नीचे, कोई किसी को भूल रहा हैं..
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तुम्हारे ख़्वाब से हर शब लिपट के सोते हैं.. सज़ाएँ भेज दो हम ने ख़ताएँ भेजी हैं.. -------- वो उम्र कम कर रहा था मेरी.. मैं साल अपने बढ़ा रहा था..
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हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते.. वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते.. -------- आदतन तुम ने कर दिए वादे.. आदतन हम ने ए'तिबार किया..
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कल का हर वाक़िआ तुम्हारा था.. आज की दास्ताँ हमारी है.. -------- कितनी लम्बी ख़ामोशी से गुज़रा हूँ.. उन से कितना कुछ कहने की कोशिश की..
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कभी तो चौंक के देखे कोई हमारी तरफ़.. किसी की आँख में हम को भी इंतिज़ार दिखे.. -------- काई सी जम गई है आँखों पर.. सारा मंज़र हरा सा रहता है..
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उठाए फिरते थे एहसान जिस्म का जाँ पर.. चले जहाँ से तो ये पैरहन उतार चले.. -------- सहर न आई कई बार नींद से जागे.. थी रात रात की ये ज़िंदगी गुज़ार चले..
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कोई न कोई रहबर रस्ता काट गया.. जब भी अपनी राह चलने की कोशिश की… -------- वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर.. आदत इस की भी आदमी सी है…
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कोई अटका हुआ है पल शायद.. वक़्त में पड़ गया है बल शायद.. -------- आ रही है जो चाप क़दमों की.. खिल रहे हैं कहीं कँवल शायद..
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