जहालत का डिजीटल रुप देखा हैं होते अमन का खून देखा हैं.. बदल दो तक़दीर वतन की वतन का सौदागर ग्रुप देखा हैं..

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वो सहर जल्द ही आनी हैं जहालत की ख़त्म होती कहानी हैं.. उठो, ज़ालिमों का ज़ुल्म तोड़ दो फ़िज़ा में अब यहीं रवानी हैं..

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ये जहालत नहीं अच्छी लगती नफ़रत की अदालत नहीं अच्छी लगती.. ज़िंदा रहना हैं तो चुप रहो बादशाह को मुखालिफत नहीं अच्छी लगती..

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कैसे चेहरे उतरे हैं सब के उरूज पर हैं जहालत अब के.. दे रहा हैं पैगाम अमन का वो ज़ालिम कातिल हैं जब के..

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जहालत की कैसी घटा छाई हैं दुश्मन भाई का बना भाई हैं.. अफसोस मोहब्बत के ज़माने गुज़र गए नफरत की कैसी आंधी आई हैं..

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बादशाह चाहता हैं सब तरफ़दार हों कहानी में उसी के किरदार हों.. हर दम सब हिमायत करें उसकी हर बाशिंदा जहालत का अलमबरदार हों..

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तेरी जहालत पे हँसी आती हैं कहता हैं नई सदी आती हैं.. वो चाहते हैं सदा वर्चस्व अपना अब आँखों मे नमी आती हैं..

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संभलों बडी मुश्किल डगर आती हैं ठहरो इंकिलाब की ख़बर आती हैं.. इस जहालत को दफ़न कर दो वतन की फ़िज़ा मुस्कुराना चाहती हैं..

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बेखबर ना रहो साज़िशों से अब उठो, जहालत की अब ज़ंजीर तोड़ो.. कब तक उठाओगे बोझ गुलामी का होकर मुत्तहीद ज़ालिम की शमशीर तोड़ो..

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Shayari Sukun

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