Shayari Sukun Presents
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ज़ालीम बादशाहों को हुसैनी ख़ातीर में लाते नहीं हालात की आंधीयों से गुलामे हुसैन घबराते नहीं अपने लहू से सींचा है मेरे हुसैन ने इस चमन को ये बाग़-ए-हुसैन है इसके फुल कभी मुरझाते नहीं -Moeen
करबला में अपने नाना का वादा वफ़ा कर दिया सर कटा कर..... हक़ बंदगी का अदा कर दिया अब कहाँ मजाल यज़ीदीयों की उठाए सर अपना हुसैनीयत का वो परचम हुसैन ने ऊँचा कर दिया -Moeen
करबला की ख़ाक.....आज तलक खून रोती है बिन बाबा के बड़ी मुश्किल से सकीना सोती है सर कटा तो सकते है मगर झुका नहीं सकते वो जिन के लहू में शामील.... हुसैनीयत होती है -Moeen
रकीबों को अपने सीने से लगाने वाला हुसैन है ज़माने को हक़ की राह दिखाने वाला हुसैन है सजदे किए है जिस ने अदा तलवारों के साये में ज़माने को बंदगी का पाठ पढ़ाने वाला हुसैन है -Moeen
हुसैन के लबों को चूमने को तरसती फुरात है हुसैन है अज़ीम.....आला उस की हर बात है जिस की बंदगी पर है खुद ख़ुदा को भी नाज़ ज़माने में ऐसी वो एक मेरे हुसैन की ज़ात है -Moeen
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Imam hussain ki shahadat
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