चाँद शरमाता रहा तेरे हुस्न से खुदा ने तुझे ऐसा जमाल दिया.. अल्फाज़ों से कैसे बयाँ हो मोहब्बत तेरे नाम हर माह-व-साल किया..
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धड़कनों ने बनाया हैं तुझे खुदा शब-व-रोज़ तेरी ही इबादत की.. जो करनी चाही कभी तेरी शिकायत लफ्ज़ों ने मुझ से बगावत की..
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तेरी राहगुज़र पर किए कभी सजदे हर हद से गुज़रते चले गए.. जो लिखनी चाही गज़ल तुझ पर अल्फाज़ सारे खुदकुशी करते चले गए..
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कोई खबर करें उसे जाकर मुझे उस बिन रहना नही आता.. अल्फ़ाज अब मैं कहाँ से लाऊँ तुझे कितना चाहता हुँ, कहना नही आता.. Lafz Shayari
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लफ्ज़ों के इंतिखाब ने किया बदनाम खुदा जानता हैं मैं बुरा ना था.. वो तकता रहा परदे की आड़ से ज़माना समझा कल चाँद पुरा ना था.. *इंतिखाब - चयन
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अब यह सिलसिला जारी होगा लफ्जों का खेल शुरू होगा.. कुछ दर्द कुछ इश्क होगा आज समा कुछ और होगा... Shayari on Lafz
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लफ्ज़ों को पिरोना हमे ठीक से आता नहीं.. आहत तब हुई जब हमने कहा, पर आप समझे नहीं...
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सैलाब तो कई आएंगे जलजले भी बहोत होंगे.. जब लफ्ज़ से हम आपके दिल में गुजरते जाएंगे..
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अपने लफ़्ज़ों को बहा दिए हम अश्क ए सागर में.. नमी से उनको इकरार हुआ चले गए तन्हा छोड़ कर हमे...
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