बिछड़ कर तुझ से उदास रहते हैं ज़माने के सितम चुपचाप सहते हैं रूठ जाता हुँ गुस्से में खुद से बहते अश्क सदीयों की दास्ताँ कहते हैं

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आसमान पर चाँद तन्हा ज़मीं पर मैं खोया रहता हुँ हर दम कहीं पर मैं गुस्से से उस का मुझ पर चिल्लाना तेरी यादें हैं और अब वही पर मैं

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हर दम मुझे उन की नज़र देखे वही आए नज़र हम जिधर देखे गुस्से से मुँह फुलाए बैठी हैं वो कहाँ जाए अब हम और किधर देखे

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खुदा की है रहमत, जो किया तुमने मेरा इंतखाब.. छोड़ो भी ये नाराजगी अब, कर दो गुस्से को बेनकाब.. इंतखाब : चुनना, चयन

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बेमिसाल है हुस्न तेरा, गुस्सा भी तेरा बहुत खूब.. गर दो तुम इजाजत जानम, तो प्यार में जाऊं डूब..

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ये आंखे सिर्फ तुम्हारी, जुस्तजू कर रही हैं.. गुस्सा भूल जाओ तुम, आरजू कह रही है.. जुस्तजू : खोज, तलाश

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गुस्से में वो मुझसे बात नहीं करता नाराज़ हो जाए तो फिक्र नहीं करता.. बीमार भी पड़ जाऊं उसकी बातों से तो भी उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता..

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जब भी तुम्हें गुस्सा आता हैं मुझे ख़ुद से दूर कर देते हो.. ये कैसा प्यार हैं तुम्हारा यार बात बात पर गुस्सा हो जाते हो..

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गुस्से में तुम जो मुझसे कहते हो सच बताओ क्या दिल से कहते हो..? नाराज़ हो मुझसे तो दूर तो न रहो क्या सचमें मुझसे नफ़रत करते हो..?

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