Zafar Iqbal Poetry

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बात ऐसी भी कोई नहीं कि मोहब्बत बहुत ज़ियादा है  लेकिन हम दोनों से उस की ताक़त बहुत ज़ियादा है 

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आप के पीछे पीछे फिरने से तो रहे इस उम्र में हम राह पे आ बैठे हैं ये भी ग़नीमत बहुत ज़ियादा है  लेकिन हमको ख़ुश रहने की आदत बहुत ज़ियादा है

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इश्क़ उदासी के पैग़ाम तो लाता रहता है दिन रात  लेकिन हमको ख़ुश रहने की आदत बहुत ज़ियादा है 

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काम तो काफ़ी रहता है लेकिन करना है किस ने यहां  बेशक रोज़ इधर आ निकलो फ़ुर्सत बहुत ज़ियादा है

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हसरत भी काफ़ी है लेकिन हैरत बहुत ज़ियादा है... क्या कुछ हो न सका हमसे और होने वाला है क्या कुछ   हसरत भी काफ़ी है लेकिन हैरत बहुत ज़ियादा है 

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सैर ही करके आ जाएंगे फिर बाज़ार-ए-तमाशा की  जिस शय को भी हाथ लगाएं क़ीमत बहुत ज़ियादा है

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हुस्न वो जैसा भी है उस की दहशत बहुत ज़ियादा है... उसकी तवज्जो हासिल की और बीच में सब कुछ छोड़ दिया  हिकमत जितनी भी हो इस में हिमाक़त बहुत ज़ियादा है 

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इश्क़ है किसको याद कि हम तो डरते ही रहते हैं सदा हुस्न वो जैसा भी है उस की दहशत बहुत ज़ियादा है  सच पूछो तो इसकी हमें ज़रूरत बहुत ज़ियादा है

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एक चीज़ जो अपनी रसाई से बाहर है कहीं 'ज़फ़र'  सच पूछो तो इसकी हमें ज़रूरत बहुत ज़ियादा है

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