अहले-ए-दिल और भी हैं अहल-ए-वफ़ा और भी हैं एक हम ही नहीं दुनिया से ख़फ़ा और भी हैं
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हम पे ही ख़त्म नहीं मस्लक-ए-शोरीदासरी चाक दिल और भी हैं चाक क़बा और भी हैं
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क्या हुआ गर मेरे यारों की ज़ुबानें चुप हैं मेरे शाहिद मेरे यारों के सिवा और भी हैं
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सर सलामत है तो क्या संग-ए-मलामत की कमी जान बाकी है तो पैकान-ए-कज़ा और भी हैं
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मुंसिफ़-ए-शहर की वहदत पे न हर्फ़ आ जाये लोग कहते हैं कि अरबाब-ए-जफ़ा और भी हैं
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ये कूचे, ये नीलामघर दिलकशी के, ये लुटते हुए कारवां ज़िंदगी के, कहाँ है कहाँ है मुहाफ़िज़ खुदी के? जिन्हें नाज़ है हिंद पर,वो कहाँ हैं?
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चंद कलियां निशात की चुनकर मुद्दतों महवे यास रहता हूं तेरा मिलना खुशी की बात सही तुझ से मिलकर उदास रहता हूं
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ये भूखी निगाहें हसीनों की जानिब ये बढ़ते हुए हाथ सीनों की जानिब लपकते हुए पांव ज़ीनों की जानिब सना-ख़्वाने-तक़दीसे-मशरिक़ कहां हैं
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बड़े यक़ीन से मैंने ये हाथ माँगा है मेरी वफ़ा ने हमेशा का साथ माँगा है दिलों की प्यास ने आब-ए-हयात माँगा है दिलों की प्यास ने आब-ए-हयात माँगा है
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अगर मुझे न मिले तुम तो मैं ये समझूँगी कि इंतज़ार की मुद्दत अभी नहीं गुज़री अगर मुझे न मिले तुम तो मैं ये समझूँगी कि सिर्फ़ उम्र कटी ज़िंदगी नहीं गुज़री
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