सागर के किनारे से उतरकर कब लहरों में बह गई पता ही ना चला उस ने भी इस कदर अपना बनाया कि कब खुदको खो दिया पता ही नहीं चला Sagar Shayari

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चाहें लाख चाहत हो मुझे अपने बेकिफ्र आजादी कि लेकिन मुसाफिर-ए-सागर को परवाह नहीं होती किनारों की.. Shayari on Sagar

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खामोश खड़ा था मैं अश्कों के सागर को रोके हुए ताकि तुझे कोई दुख ना हो अपनी गलती से मुकरते हुए

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सागर से प्यार कर के प्यास के लिए तड़पा नहीं करते जब मुलाक़ात हो बवंडर से तो यू बैचेन नहीं हुआ करते

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तुम मिले तो जिंदगी को एक आयाम मिल गया है कुछ ऐसे.. सागर में बहती अकेली कश्ती को किनारा मिल गया हो जैसे…

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सागर की लहरे आज मेरी बैचेनी बढ़ा रही है ये आगाज है किसी तूफ़ान का या अपना प्यार जता रहीं हैं

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यूं ना देखो मुझे, ये आंख तो बस एक जरिया है इजहार का जो उतर कर देखोगे मेरे दिल में, मिलेगा एक सागर प्यार का

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आप तो अनंत सागर हो, मै जरा सी बूंद आपकी.. जो अलग हुई बूंद सागर से, हाल वहीं होगा जैसा होता है रोशनी बिना चांद की..

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सुरज की तरह हम ने ढलना सिखा हैं ठोकरों से राह की हम ने चलना सिखा हैं सागर से सीखा हैं खामोशी का हुनर दरियाओं से हम ने मचलना सिखा हैं

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