जीना लगता हैं सज़ा मुझे यार के बिना
कैसे गुज़रेगी ये ज़िंदगी तेरे प्यार के बिना..
तुझ से बिछड़ कर हम ने ये जाना हैं
कैसे फूल रहता हैं उदास खार के बिना..
*खार: काँटा
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मुझे गीतों की तरह लबों पर सजाता था कोई
मेरी खातीर मुंडेरों पर रोज़ दीप जलाता था कोई..
मुझ से जुदाई के ख़याल से लरज़ जाता था
शब भर इसी ख़याल से आँसू बहाता था कोई..
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