तन्हा तन्हा हम रो लेंगे महफ़िल महफ़िल गायेंगे जब तक आँसू पास रहेंगे तब तक गीत सुनायेंगे तुम जो सोचो वो तुम जानो हम तो अपनी कहते हैं देर न करना घर जाने में वरना घर खो जायेंगे
होश वालों को ख़बर क्या बेख़ुदी क्या चीज़ है इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िन्दगी क्या चीज़ है.. हम लबों से कह न पाए उन से हाल-ए-दिल कभी और वो समझे नहीं ये ख़ामोशी क्या चीज़ है..
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दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है मिल जाए तो मिट्टी है… खो जाए तो सोना है.. बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने किस राह से बचना है किस छत को भिगोना है..
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दिन सलीक़े से उगा रात ठिकाने से रही दोस्ती अपनी भी कुछ रोज़ ज़माने से रही.. शहर में सब को कहाँ मिलती है रोने की फ़ुरसत अपनी इज़्ज़त भी यहाँ हँसने-हँसाने से रही..
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देखा हुआ सा कुछ है तो सोचा हुआ सा कुछ हर वक़्त मेरे साथ है उलझा हुआ सा कुछ.. साहिल की गिली रेत पर बच्चों के खेल सा हर लम्हा मुझ में बनता बिखरता हुआ सा कुछ..
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बदला न अपने आप को जो थे वही रहे मिलते रहे सभी से मगर अजनबी रहे.. अपनी तरह सभी को किसी की तलाश थी हम जिस के भी क़रीब रहे दूर ही रहे..
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अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं.. पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम हैं..
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अब खुशी है न कोई ग़म रुलाने वाला हम ने अपना लिया हर रंग ज़माने वाला.. उस को रुखसत तो किया था मुझे मालूम न था सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला..
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किसी भी शहर में जाओ कहीं क़याम करो कोई फिज़ा कोई मंज़र किसी के नाम करो.. हर एक बस्ती बदलती है रंग रूप कई जहाँ भी सुबह गुज़ारो उधर ही शाम करो..
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कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता कहीं ज़मीं तो कहीं आसमाँ नहीं मिलता.. तेरे जहान में ऐसा नहीं के प्यार न हो जहाँ उम्मीद हो इस की वहाँ नहीं मिलता..
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