Shayari Sukun Presents
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इस क़दर मेरे हवास पर तारी हो तुम मैं थम चूका हुँ…. मगर जारी हो तुम क्यों करती हो तुम फ़िक्र इतनी अपनी खुदा गवाह अब मेरी ज़िम्मेदारी हो तुम -Moeen
खुदा करे तू मेरी तहरीरों से आशना हो जाए तेरी ज़िम्मेदारी का हक़ मुझ से अदा हो जाए खुदा दिखाए वो दिन भी खैर से मुझे एक दिन तेरे पते पर पहुँचे वजूद मेरा और लापता हो जाए -Moeen
तेरे इश्क़ से पाई है जीला… भटकेंगे ना कभी ऐसी पी है निगाहों से तेरी… बहकेंगे ना कभी यक़ीन की डाली पर खिलते फूल ज़िम्मेदारी के टुटी जो डाल तो फिर ये फूल महकेंगे ना कभी -Moeen
खुदा करे तेरे बाद कोई और ना दिखाई दे तुझ पर ऊँगली उठाने वाला झूठा दिखाई दे जानेमन तुझ को सौंपता हुँ ये ज़िम्मेदारी मैं जब खुले आँख सामने तेरा चेहरा दिखाई दे -Moeen
ये राहे मोहब्बत है… बड़ी तवील सी मगर अफ़सोस ज़िंदगी है क़लील सी जब भी सोचा क्या होती है ज़िम्मेदारी लगती है तेरी ज़ात जानम दलील सी -Moeen
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