करबला में वादा अपना निभाने वाला हुसैन हैं हक़ की खातीर सर कटाने वाला हुसैन हैं.. वो कैसे हो सकते हैं गुमराह ज़माने में जिन्हें जहाँ में रास्ता बताने वाला हुसैन हैं..
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मुझे क्या फ़िक्र, हुसैन जन्नत का इमाम होगा दम-ए-आखिर लबों पर हुसैन का नाम होगा.. थामे रहो तुम युँही दामन मेरे हुसैन का देखना एक रोज़ वक्त भी तुम्हारा गुलाम होगा..
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हक़ का परचम, वजूद-ए-हुसैन से बुलंद हैं बातील के आगे सर झुकाना उसे नापसंद हैं.. खून से अपने सींचा हैं सच्चाई का दरख़्त ज़माना आज तक हुसैन का अहसानमंद हैं..
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करबला की वादीयों में कुछ रोज़ क़याम हो आँखों में अश्क और लबों पर सलाम हो.. वहाँ खड़े हो कर पढू मैं कभी फ़ातीहा हुसैन के कदमों में ये ज़िन्दगी तमाम हो..
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वक्त के बादशाह को खातीर में लाते नहीं हुसैन के गुलाम हालात से कभी घबराते नहीं.. यज़ीदीयों पर हैं तारी हैबत आज तलक हुसैन की ज़ालीम बादशाह भी हुसैनीयों से टकराते नहीं..
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करबला में हक़ बंदगी का अदा कर दिया सर कटा कर वादा अपना वफ़ा कर दिया.. गुमनामी के अंधेरों में गुम हैं यज़ीद आज परचम हक़ का हुसैन ने ऊँचा कर दिया..
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हुसैन की शान में कोई ऐसा कलाम हो जाए मेरा शामील उन के गुलामों में नाम हो जाए.. चूमता फिरूँ वादी-ए-करबला के ज़र्रों को हुसैन के पहलू में ज़िन्दगी की शाम हो जाए..
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दुशमनों को गले से लगाना सिखाया हुसैन ने रास्ता ज़माने को हक़ का बताया हुसैन ने.. कर दिया माफ़ कातीलों को अपने बाप के सबक़ इंसानियत का ऐसा पढ़ाया हुसैन ने..
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अली असगर का प्यास से तड़पना याद करो वो मासूम सकीना का ज़रा सिसकना याद करो.. दिखाई हैं हुसैन ने, राह-ए-हक़ ज़माने को नाम-ए-हुसैन से बादशाहत का लरज़ना याद करो..
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