Bulleh Shah Shayari

तुम सुनो हमारी बैना, मोहे रात दिने नहीं चैना, हुन पी बिन पलक ना सरीए अब लगन लगी किह करीए ?

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इह अगन बिरहों दी जारी, कोई हमरी प्रीत निवारी, बिन दरशन कैसे तरीए? अब लगन लगी किह करीए?

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बुल्ल्हे पई मुसीबत भारी, कोई करो हमारी कारी, इक अजेहे दुक्ख कैसे जरीए? अब लगन लगी किह करीए?

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ना हम हिन्दू ना तुर्क ज़रूरी, नाम इश्क दी है मनज़ूरी, आशक ने वर जीता, ऐसा जग्या ज्ञान पलीता

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वेखो ठग्गां शोर मचाइआ, जंमना मरना चा बणाइआ मूर्ख भुल्ले रौला पाइआ, जिस नूं आशक ज़ाहर कीता, ऐसा जग्या ज्ञान पलीता

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सस्सी दा दिल लुट्टण कारन, होत पुनूँ बण आया ए इक नुकता यार पढ़ाया ए

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नमाज़ रोज़ा ओहनां की करना, जिन्हां प्रेम सुराही लुट्टी कुड़े, मैनूं दस्सो पिया दा देस

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बुल्ल्हा शौह दी मजलस बह के, सभ करनी मेरी छुट्टी कुड़े, मैनूं दस्सो पिया दा देस

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जिस तरह चाहे नचाले तेरे इशारो पे ऐ मालिक मुझे तेरे ही लिखे हुए अफ़साने की किरदार हु मै

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ज़हर वैख के पीता ते के पीता? इश्क़ सोच के कीता ते के कीता? दिल दे के, दिल लेन दी आस रखी? प्यार इहो जिया कीता, ते के कीता

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